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ट्रिपल तालाक को ज्यादा से ज्यादा दंडनीय अपराध बनाने की कोशिश

ट्रिपल तालाक को ज्यादा से ज्यादा दंडनीय अपराध बनाने की कोशिश में भारत सरकार लगी हुई है,ऐसा लगता है के पुरे साल भारत सरकार के पास ट्रिपल तलाक़ के सिवा कोई काम ही नहीं है, तत्काल ट्रिपल तालाक को दंडनीय अपराध बनाने के लिए एक संशोधित बिल लोकसभा द्वारा पारित होने की उम्मीद है,जिसमे ये प्रावधान होगा और कानून में संशोधन किया जाएगा के ट्रिपल तालाक को ज्यादा से ज्यादा दंडनीय अपराध बनाया जाए.

ट्रिपल तालाक का मुद्दा तो बहुत पहले से गरम था लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा पिछले साल अगस्त में कानून पारित कर दिया गया,हर तरफ भारतीय मुस्लिम ने इसका बहिष्कार भी किया लेकिन सोशल मीडिया में ये दिखाया गया के ट्रिपल तलाक कानून से मुस्लिम महिलाएं बहुत खुश हैं.जो कुछ भी हुआ लेकिन ये सोचने का विषय है कि आखिर ट्रिपल तलाक का मामला क्यों खड़ा हुआ?

ट्रिपल तलाक एक अपराध
ट्रिपल तलाक एक अपराध

आखिर ट्रिपल तलाक क्या है

इस्लाम धर्म में अपनी पत्नी से अलग होने के लिए तलाक़ दिया जाता है,धर्म के उलमा लोगों को ये बताते हैं कि किसी तरह भी चाहे ग़ुस्सा में,नींद में,मज़ाक़ में,सपना में, जिस तरह भी हो अगर तीन तलाक़ बोल दिया तो तुम्हारी पत्नी तुम्हारे लिए एक गैर औरत होगयी तुम्हारा उससे कोई लेना देना नहीं रहेगा,ट्रिपल तलाक़ के बाद उस पत्नी को तुम्हारा देखना भी गलत होगा,मुझे ऐसा लगता है के इस्लाम के रहबर उलमा ट्रिपल तलाक़ को कभी ठीक से समझने की कोशिश ही नहीं किये इसलिए ये ट्रिपल तलाक का मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया.

अगर ये इस्लाम के रहबर उलमा ट्रिपल तलाक़ को ठीक से समझे होते तो शायद ये नौबत आज नहीं आती,अगर ठीक से क़ुरआन और हदीस का मन्थन किये होते तो ट्रिपल तलाक़ को इतना क्रूर रूप से पेश नहीं करते,मेरे पढाई के हिसाब से इस्लाम एक हिकमत से भरा हुआ धर्म है,इसमें ऐसे बेहूदा बाते नहीं हो सकती है,तलाक़ में भी बहुत हिकमत है और बहुत सिलसिले हैं जिससे पार करने के बाद कोई गुंजाइश नहीं रहे तब आप तलाक़ दे सकते हैं.लेकिन इसको ऐसा मज़ाक बना दिया कि हर कोई ट्रिपल तलाक़ के बारे में अपनी कुछ न कुछ बोलने से नहीं चूकता है.

आप सब ने ट्रिपल तलाक़ और हलाला पे खूब पोस्ट पढ़ा और दिल खोल के कमेंट भी किया,जिन्हे ये भी पता नहीं है के अपना पिछवाड़ा कैसे धोया जाता है उन लोगों ने भी अपना तर्क देने से बाज नहीं आये,हर धर्म में कुछ बाते ऑप्शनल (Optional) होती है जो किसी मज़बूरी या किसी हालात के तहत किया जाता है,किसी मज़बूरी वश किया जाता है,हर धर्म में प्रावधान होता है के अगर इस तरह की मज़बूरी हो गयी तो क्या किया जाये इसलिये उसका एक विकल्प रास्ता बता दिया जाता है.इसका ये मतलब नहीं होता कि उससे हर मनुष्य अपने फायदे के अनुसार उपयोग करने लगे,अगर उस ऑप्शनल धार्मिक प्रावधान का कोई गलत उपयोग करता है तो वो पाप का भागी होता है.मगर यहाँ भारत में बस एक मुद्दा मिलना चाहिए,किसी धर्म में कुछ नया ताज़ा मिलना चाहिए जिससे नफरत पैदा की जा सके.और सोशल मीडिया पे कुछ ज्यादा ही पढ़े लिखे मित्र दनादन अपना दिमाग हल्का करने लगते हैं.खैर आप ने आज तक ट्रिपल तलाक़ और हलाला के बारे में बहुत पढ़ा होगा.ट्रिपल तलाक़ का जिम्मेदार भी खुद मुस्लमान ही है !

ट्रिपल तालाक को ज्यादा से ज्यादा दंडनीय अपराध बनाना

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अगस्त में कहा था कि मुस्लिम पुरुषों की पारंपरिक पद्धति ने तुरंत अपनी पत्नियों को "तालाक" को तीन बार "असंवैधानिक" और "मनमाना" कहकर तलाक दे दिया। ये गलत है ऐसा नहीं होना चाहिए.ये बात इस्लाम भी नहीं बताता है लेकिन इस्लाम के उलमा जरूर बताते हैं.

1. प्रस्तावित कानून "ट्रिपल तालक" को तीन साल तक की जेल की सजा और पति के लिए जुर्माना के साथ अपराध बनाता है, और महिला को रखरखाव का हकदार बनाता है। यह "निकाह हलाला" को भी संबोधित करता है, जिसके तहत एक तलाकशुदा महिला को दूसरे पुरुष से शादी करनी होती है और अगर वह अपने पति से दोबारा शादी करना चाहती है, तो उसे शादी करना चाहिए।

2.बीजेपी अपनी पूरी ताक़त के साथ इसे पास करने की कोशिश में है जिस के लिए अपने खास नेताओं को भी मुस्तेहाद रहने को कहा है.केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से संशोधित विधेयक लाने की उम्मीद है।

3. विपक्ष ट्रिपल तालाक के अपराधीकरण के खिलाफ था, यह तर्क देते हुए कि यह मुस्लिम महिलाओं के लिए एक घृणा होगी।ये बात 100% सत्य है के ये बहुत बड़े बड़े जुर्म को जनम देगा, तलाकशुदा महिला और उसके बच्चों से भीख मगवाने की तयारी है.

4. सरकार ने पति के लिए जेल की अवधि, और उस प्रावधान को खत्म करने से इनकार कर दिया है, जो केवल एक मजिस्ट्रेट को अधिकार देता है, न कि स्थानीय पुलिस अधिकारी को जमानत पर रिहा करने के लिए। हालांकि, इसने प्रस्तावित कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए तीन संशोधन, या बदलाव किए हैं।

5. संशोधित विधेयक के तहत, केवल एक महिला, या उसके करीबी रिश्तेदार, अपने पति के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज कर सकते हैं। एक दूसरा संशोधन उसे मामले को छोड़ने की अनुमति देता है यदि युगल समझौता करता है।

6. एक तीसरा संशोधन कहता है कि मजिस्ट्रेट पत्नी की सुनवाई के बाद ही पति को जमानत पर रिहा करने का फैसला कर सकता है।

7. सितंबर में, सरकार ने एक अध्यादेश या कार्यकारी आदेश के माध्यम से तत्काल ट्रिपल तालक को दंडनीय बना दिया। प्रस्तावित कानून अध्यादेश का स्थान लेगा।

8. पिछले साल अगस्त में 3-2 के एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तालक को गैर-इस्लामिक और "मनमाना" कहा, और यह असहमत पाया कि यह धार्मिक प्रथाओं का एक अभिन्न अंग था।

ट्रिपल तलाक का मामला जो इस्लाम के उलमाओं ने लोगों के सामने पेश किया था वो ऐसे भी ठीक नहीं था,हालांकि इस्लाम इस बात की इजाज़त नहीं देता है के इस तरह तलाक दी जाये,शायद अभी तक इस्लाम के उलमाओं ने ये पेश नहीं किया है कि क़ुरआन और हदीस तलाक़ के बारे में क्या बताता है,तलाक़ किन किन सूरतों में दिया जाता है,तलाक़ देने से पहले किस तरह की सुलह और समझौते होते हैं,फिर भी कोई सूरत नज़र नहीं आती और सुलह नहीं होता तो किस हालात में तलाक़ दिया जाता है, एक ही तलाक़ देना काफी होता है या तीन तलाक़ देना जरूरी है!

तलाक़ देने के बाद तलाकशुदा पत्नी के क्या हक़ हक़ूक़ होते हैं ये सारी जानकारी पेश करनी चाहिए,अगर क़ुरआन और हदीस की पूरी जानकारी दी जाये तो मुझे ऐसा नहीं लगता है के कोई भी खुदाई क़ानून से असहमत होगा,मुस्लमान सावधान हो जाएं क्यों कि ट्रिपल तलाक का कानून ज्यादा से ज्यादा सख्त बनाने की कोशिश की जा रही है,जिस में बीजेपी बहुत सुर्खुरू नज़र आ रही है.

तलाक़ इस्लामिक क़ानून के तहत भी एक बहुत बड़ा अपराध और गुनाह माना गया है,इस अपराध से हर मुस्लमान को बचना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि अपनी शादी-शुदा ज़िन्दगी अच्छे तरीक़े से गुजरें,अपना जीवन नरक होने से बचाये और सरकारी कानून से भी बचें.

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