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नमाज फज़र की सुन्नत पढ़ना हदीस का उल्लंघन : अवश्य पढ़ें


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नमाज फज़र की सुन्नत पढ़ना हदीस का उल्लंघन : मेरे पास बहुत सारे मित्रों का सन्देश आता रहा है के कभी नमाज़ फज़र की सुन्नत के बारे में लिखे,नमाज़ फज़र की सुन्नत में जो बदलाव हो रहा है और खुलेआम हदीस का उलंघन किया जा रहा है उसके बारे में लिखें! हौली विशेर आप के बिच की आवाज़ है जो हमेशा आप के साथ है,आज हौली विशेर ने नमाज़ फज़र की सुन्नत पढना हदीस के खिलाफ लिखने की कोशिश किया है!

आज कल केवल 2% मुसलमान पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ते हैं,लेकिन जुमा के दिन 100% मुसलमान हो जाते हैं,आज कल इस्लाम अपने पांच सतून से हट कर किसी दूसरे सतून पे खड़ा हो गया है जैसे- 1.जुमा की नमाज़ पढ़ना 2. ईद और बक़रईद की नमाज़ पढ़ना 3. जनाज़ा की नमाज़ पढ़ना  4. गोश्त खाना !ये अक्सर मुसलमानों ने इस्लाम का सतून बना लिया है!खैर हम बात कर रहे हैं नमाज फजर की सुन्नत के बारे में, कुछ मुसलमान नमाज़ पढ़ते है लेकिन सवाब के चक्कर में गुनाह कर बैठते हैं,ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में बता रहा हूँ जो नमाज़ फज़र की सुन्नत पढ़ कर हदीस का उलंघन करते हैं!

नमाज़ फज़र की सुन्नत में हदीस का उलंघन

जानता हूँ के मैं इस विषय पे लाख जानकारी जमा कर के कुछ लिखूं तब भी लोग इस बात का इकरार नहीं करेंगे,और अजीब विडंबना है कि जो लोग इक़रार नहीं करते उनके पास खुद से कोई इस्लामिक किताब पढ़ने के लिए वक़्त भी नहीं है जिससे वह खुद जानकारी हासिल कर सकें,ऐसे लोग सिर्फ मुल्ला,मौलवी,और मुफ़्ती की बातें सुन के ही खुद को इस्लाम का विद्वान् समझने लगते हैं,कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिन्हे कुरान,हदीस से पढ़ कर अगर सही बात बता दो तब भी मानने को तयार नहीं होते...बोलते हैं के पहले मैं मुफ़्ती साहेब से पूछूंगा तब इससे सही मानूँगा (नऊजोबिल्लाह)!

मैं कोई मुफ़्ती या क़ाज़ी नहीं हूँ लेकिन नमाज़ फज़र की सुन्नत के साथ जो बिगाड़ मैं देख रहा हूँ उस के बारे में लिखना जरूरी समझ रहा हूँ,नमाज़ फज़र की सुन्नत में क्या क्या बिगाड़ लोगों ने पैदा किये हैं इसके बारे में तफ्सील से लिख रहा हूँ और हदीस की रौशनी में सही क्या है ये भी लिखूंगा !
1. फज़र की फ़र्ज़ नमाज़ की तक्बीर हो रही होती है या एक रक-अत ख़तम भी हो चुकी होती है और लोग फज़र की सुन्नत पढ़ने में लग जाते हैं ! ऐसा करते हुए भी देखा गया है के आखरी रक-अत के बाद तशहुद में जमात बैठी है और लोग पीछे सुन्नत की नीयत बाँध लेते हैं,

एक सज्जन बता रहे थे के- "कुछ दिन पहले ही एक साहब को देखा के हम एक ही साथ मस्जिद में दाखिल हुए जमात तशहुद में बैठी थी शायद थोड़ी देर में नमाज़ ख़त्म हो जाती, मैं जा के जमाअत के साथ मिल गया लेकिन वह साहेब पीछे सुन्नत की नीयत बाँध लिए! लोग फ़र्ज़ को रख देते हैं ताक़ पे और सुन्नत की अदायगी पहले करते हैं !ये काम अक्सर हनफ़ी मसलक के तब्लीग़ी जमात के लोग करते हैं बाक़ी भी करते होंगे लेकिन मैं ने अभी तक इन्हे ही ऐसा करते हुए देखा है"!

अब सवाल ये खड़ा होता है के क्या ऐसा करना सही है?कुछ लोग ये सोच रहे होंगे कि आखिर इसमें बुरा ही क्या है?नमाज़ फज़र की सुन्नत की बहुत अहमियत है,और आप के सामने एक पूरी तक़रीर शुरू हो जाएगी!


2.फज़र की फ़र्ज़ नमाज़ ख़त्म होते ही सुन्नत की क़ज़ा पढ़ने के लिए खड़े हो जाना,इसमें हदीस की रौशनी में थोड़ी बहुत गुंजाइश है लेकिन ऐसी भी क्या जल्दी के इधर सलाम फेरा और उधर सुन्नत के लिए खड़े होगये,न कोई तसबीह न कोई अज़कार....

नमाज फज़र की सुन्नत की फ़ज़ीलत

नमाज फज़र की सुन्नत की दो रक-अत है,इसकी फजीलत और इससे पाबन्दी से अदा के बारे में सही हदीस-
हज़रत आयशा र.नबी पाक सल्ललाहो अलैहसल्लम से फज़र की सुन्नतों के बारे में रेवायेत करती हैं के आप ने फ़रमाया " ये दो रक-अत मुझे पूरी दुनिया से जायदा महबूब है" (مسلم، أحمد,الترمذي)
हज़रात आयशा ही फरमाती हैं के नबी पाक सल्ललाहो अलैहसल्लम सुबह की सुन्नतों से जायदा किसी नफल नमाज़ पर पाबन्दी न फरमाते थे"

अब हम हदीस की रौशनी में देखते हैं कि हदीस में क्या है और बाक़ी इमाम इस बारे में क्या कहते हैं,सब से पहले आप ये हदीस देखें:

हज़रत अबू होरैरह र.ज. से रिवायत है के नबी पाक सल्लल्लाहो अलैहसल्लम ने फ़रमाया " जब जमात खड़ी हो जाये तो सिवाए फ़र्ज़ नमाज़ के कोई नमाज़ नहीं" (مسلم، أحمد،النسائي,ابن الماجه,الترمذي,ابو داود

नमाज फज़र की सुन्नत की क़ज़ा

अगर सुबह की सुन्नतें जमात से पहले पढ़ने से रह जाएँ तो सूरज निकलने के बाद उनकी क़ज़ा की जायेगी,
हज़रत अबू होरैरह र.ज. से रिवायत है के नबी पाक सल्लल्लाहो अलैहसल्लम ने फ़रमाया "जिस ने सुबह की सुन्नतें नहीं पढ़ी तो उसे चाहिए कि उन्हें सूरज निकलने के बाद पढ़े या पढ़ ले" (الترمذي).
ये हदीस सनद के ऐतबार से हसन है-इमाम मालिक,अहमद बिन हम्बल,सुफियान सूरी,अब्दुल्लाह बिन मुबारक,इस्हाक़ रहमुल्लाह का यही मसलक है,

इमाम शाफ़ई और आम अहले हदीस उलमा के नज़दीक अगर सुबह की सुन्नत जमात से पहले पढ़ने से रह जायेतो उन्हें जमात के बाद पढ़ा जा सकता है,यही मसलक हज़रत इब्न उमर,अट्टा ,ताऊस,और इब्न ज़रीह से मन्क़ूल है,

एक दूसरी हदीस है के नबी पाक सल्लाहो अलैहसल्लम ने फ़रमाया "जिस ने सुबह की सुन्नतें नहीं पढ़ी यहाँ तक के सूरज निकल आया तो उसे चाहिए के पढ़ ले"

इमाम अबू हनीफा के नज़दीक नमाज फज़र की सुन्नत

इमाम अबू हनीफा के नज़दीक सुबह की सुन्नतों का घर पर अव्वल वक़्त में पढ़ना मस्नून है,अगर किसी ने ये सुन्नते न पढ़ी हो और उसी हालत में जमात खड़ी हो जाये तो वह देखे के सुन्नते पढ़ कर वह जमात को पा सकता है या नहीं,अगर उसका ख्याल हो के वह जमात को पा लेगा तो उसे सुन्नतें पढ़ कर जमाअत से मिल जाना चाहिए,

और अगर उसका ख्याल हो के सुन्नतें पढ़ के जमाअत को नहीं पा सकेगा तो उससे सुन्नते नहीं पढ़नी चाहिए,बल्कि जमात से मिल जाना चाहिए,बाद में भी उनकी क़ज़ा नहीं है,न सूरज निकलने से पहले और न सूरज निकलने के बाद क्यों के फज़र की सुन्नतें फ़र्ज़ नमाज़ के ताबे है जो उससे पहले ही पढ़ी जाएगी बाद में नहीं पढ़ी जाएगी !अगर सुबह की फ़र्ज़ नमाज़ भी रह जाये तो सूरज निकलने के बाद दो सुन्नतों और फ़रज़ दोनों की एक साथ क़ज़ा की जा सकती है,

अगर इमाम अबू हनीफा का ये क़ौल सही माना जाये तो फिर ऊपर वाली हदीस " जब जमात खड़ी हो जाये तो सिवाए फ़र्ज़ नमाज़ के कोई नमाज़ नहीं" का क्या होगा???

पशमंजर में ये बात मेरे समझ में आती है के इमाम अबू हनीफा ने हालात को नज़र में रखते हुए ये बात फ़रमाया होगा जैसे अगर कोई जमात खड़ी होने से एक या दो मिनट पहले मस्जिद में आता है और वह सुन्नत अदा नहीं किया है तो फिर वो क्या करे??जमात खड़ी होने का इंतज़ार करे या फिर सुन्नत पढ़े??ऐसे हालात में दूर अलग मस्जिद के एक कोने में सुन्नत अदा करने का क़ौल होगा,फज़र की सुन्नत हदीस की रौशनी में बहुत हलकी पढ़ने का हुक्म है इसलिए इसे अदा करने में दो मिनट से ज्यादा वक़्त नहीं लग सकता है,इसलिए इमाम अबू हनीफा ने इसे पढ़ लेने का क़ौल दिया होगा वरना इमाम अबू हनीफा एक हदीस के खिलाफ कैसे कोई बात कह सकते हैं?

इमाम अबू हनीफा ने यही फ़रमाया है के जमाअत छुटने का खौफ न हो तो अदा करो वर्ना मत करो लेकिन यहाँ तो लोग फ़र्ज़ नमाज़ को ही ताक पे रख देते हैं और फ़र्ज़ छोड से सुन्नत में टपटप लग जाते हैं. इमाम अबू हनीफा के नज़दीक फज़र की फ़र्ज़ नमाज़ बाद सुन्नत नहीं पढ़ना है लेकिन यही लोग बस जमाअत ख़त्म होते ही सुन्नत की नीयत बाँध लेते हैं..

सारांश
मैं ने मुख़्तसर में पूरी जानकारी नमाज फज़र की सुन्नत की देने की कोशिश की है मुझे उम्मीद है के इस्लामी भाई इस्लाह करेंगे,इस्लाम में मनमानी की जरा सा भी जगह नहीं है,जो लोग ऐसी मनमानी करते हैं उन्हें हिकमत से समझाएं,अगर मेरी ये छोटी सी कोशिश "नमाज फज़र की सुन्नत पढ़ना हदीस का उल्लंघन"अच्छी लगी हो तो दूसरों तक भी पहुंचाएं,अगर कोई बात रह गयी हो तो कमेंट कर के मेरी भी इस्लाह करें !

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