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एक मुस्लिम बादशाह जिसने मुसलमानों का क़त्ल और मुस्लिम औरतों का बलात्कार करवाया

Muslim king yazid who killed Muslims & rape Muslim ladies
यजीद की बादशाहत

एक मुस्लिम बादशाह जिसने मुसलमानों का क़त्ल और मुस्लिम औरतों का बलात्कार करवाया: जब हम इस्लामी इतिहास का पन्ना पलटते हैं तो एक अजीब सा इतिहास मिलता है जिसको पढ़ना बहुत मुश्किल सा लगता है,एक मुस्लिम बादशाह जिसने मुसलमानों का क़त्ल और मुस्लिम औरतों का बलात्कार करवाया है !एक ऐसा नाम जो पुरे इस्लाम के साफ़ सुथरे छवि पे गन्दा दाग लगा दिया!अब हम इस्लामिक इतिहास का पन्ना पलटते हैं और थोड़ा पीछे चलते हैं !

जब इस्लाम में थर्ड (तीसरा) खलीफा हज़रत उस्मान रज़.हुए तो बड़े बड़े पोस्ट पे अपने रिश्तेदारों को रखने लगे इससे बाकी सहाबा जो उस पोस्ट के हक़दार थे अंदर ही अंदर नाराज़ होने लगे.एक छोटी सी शुरुआत हज़रत उस्मान के वक़्त से ही शुरू हो चुकी थी, बहुत लोग ये भी कहते हैं के हज़रत उस्मान की तरह हज़रत अली ने भी अपने खास रिश्तेदारों को बड़े बड़े पोस्ट आता किये जैसे-हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास, हज़रत ओबैदुल्लाह बिन अब्बास,हज़रत क़सम बिन अब्बास.लेकिन हज़रत अली के वक़्त हालात बहुत अलग था दूसरे हज़रत अली के वक़्त में बाग़ी लोग बहुत ज्यादा थे इसलिए उन्हें अपने खास लोगों को ही ऐसे बड़े पोस्ट देना कोई गलत बात नहीं थी.

इस्लाम में मुस्लिम बादशाह की शुरुआत

आखिरकार हज़रत माविया रज़.के हाथ में अख्त्यार आया और ये वो ज़माना था जब इस्लाम में खिलाफत खत्म होगया और बादशाही की शुरुवात होगयी. उस वक़्त के जो बशीरत सहाबी थे वो समझ गए थे कि अब हमे बादशाही से साबका पड़ने वाला है.

अभी हम हज़रत माविया के वक़्त का ज़िक्र कर रहे हैं....हज़रत साद बिन आबि वकास जब हज़रत माविया की बैत हो जाने के बाद उन से मिले तो " सलाम अलैकेह ययोहाल मुल्क"कह कर खताब किया, हज़रत माविया ने कहा के अगर आप "अमीरुल मोमिनीन" कहते तो क्या हर्ज था? उन्होंने जवाब दिया "ख़ुदा की क़सम जिस तरह आप को हुकूमत मिली है इस तरीके से अगर मुझे मिल रही होती तो मैं इसका लेना कभी पसंद न करता"

हज़रत माविया खुद भी इस हक़ीक़त को समझते थे. एक मर्तबा उन्होंने खुद कहा था के "انااول ملوك"
मैं मुसलमानों में पहला बादशाह हूँ,बल्कि हाफिज इब्न कसीर के बक़ौल सुन्नत भी यही है के उनको खलीफा के बजाए बादशाह कहा जाए.क्यों के नबी पाक स.आ.स. ने पेशनगोई फरमाई थी की " मेरे बाद खिलाफत 30 साल तक रहेगी फिर बादशाही होगी"

यज़ीद कैसे बना मुसलमानों का बादशाह

हज़रत माविया अपनी ज़िन्दगी में ही अपने नाजायज बेटा के हाथ में बादशाहत देदी,यज़ीद की वलीअहदी के खौफ से बैत ले कर उन्होंने ने इस इमकान को भी ख़त्म कर दिया के उनके बाद कोई दूसरा सहाबी मुसलमानों का मसीहा बने और इस्लामिक तरीके से हुकूमत करे इसलिए अपने बेटा यज़ीद के हाथ में बादशाहत देदी.

 यज़ीद को बादशाह बनाने की बात कैसे शुरू हुई, इस मशवरे की शुरुवात हज़रत मुग़ैरह बिन शैब्या की तरफ से हुयी. हज़रत माविया उन्हें कूफ़ा के गवर्नर से हटाने वाले थे उन्हें इसकी खबर मिल गयी थी,फौरन कूफ़ा से दमिश्क पहुंचे और यज़ीद से मिल के कहा के " सहाबा के अकाबिर और क़ुरैस के बड़े लोग दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, मेरी समझ में नहीं आता के अमीरुल मोमिनीन तुम्हारे बैत ले लेने में देरी क्यों कर रहे हैं".

यज़ीद ने इस बात का ज़िक्र अपने वालिद से किया उन्होंने ने हज़रत मुग़ैरह बिन शैब्या को बुला के ये बात पूछा के ये क्या बात है जो तुम ने यज़ीद से कही हज़रत मुग़ैरह ने जवाब दिया अमीरुल मोमिनीन आप देख चुके हैं के क़त्ल उस्मान के बाद कैसे कैसे अख्तेलाफ़ात और खून खराबे हुए,अब ये बेहतर है के आप यज़ीद को अपनी ज़िन्दगी में ही वलिअहदी मोक़र्रर कर के बैत लेलें ताकि अगर आप को कुछ हो जाये तो इख़्तेलाफ़ बरपा न हो.

हज़रत माविया ने पूछा इस काम को पूरा करा देने की ज़िम्मेदारी कौन लेगा? उन्होंने कहा अहले-कूफ़ा को मैं संभाल लूंगा और अहले-बसरा को ज्याद, फिर इसके बाद कोई मुखालफत करने वाला नहीं है.ये बात कर के हज़रत मुग़ैरह कूफ़ा आये और 10 लोगों को 30,000 दिर्हम दे कर के इस बात पे राज़ी किया,के एक वफद की सूरत में हज़रत माविया के पास जाएँ और यज़ीद को वलीअहदी के लिए उनसे कहें,ये वफ़द हज़रत मुग़ैरह के बेटे मूसा बिन मुग़ैरह की सारकर्दगी  में दमिश्क़ गया और उस ने अपना काम पूरा कर दिया.

बाद में हज़रत माविया ने मूसा को अलग बुला के पूछा के " तुम्हरे बाप ने इन लोगों से कितने में इनका दिन (ईमान) ख़रीदा है"उन्होंने ने कहा 30,000दिर्हम में.तब तो इनका दिन (ईमान) इनकी निगाह में बहुत हल्का है. फिर हज़रत माविया ने बसरा के गवर्नर जायद को लिखा कि इस मामले में तुम्हारा क्या मश्वरा है?

उसने उबैद बिन कैबुलनामीरी को बुला कर कहा अमीरुल मोमिनीन ने मुझे इस मामले में लिखा है और मेरे नज़दीक यज़ीद में ये कमजोरियां हैं,लिहाज़ा उन के पास जा कर कहो के इस मामले में जल्दी न करें, उबैद ने कहा के आप हज़रत माविया का मश्वरा ख़राब करने की कोशिश न करें,मे जा कर यज़ीद से कहता हूँ के अमीरुल मोमिनीन ने इस मामले में अमीर जयाद का मश्वरा तलब किया है,और उनका ख्याल है के लोग इस बात की मुखालफत करेंगे क्यों कि तुम्हारे तौर तरीक़े लोगों को नापसंद है,इसलिए अमीर जयाद तुम को ये मशवरा देते हैं के तुम उन चीज़ों की इस्लाह कर लो ताकि ये मामला ठीक हो जाये!

जायद ये इस मश्वरे को पसंद किया और उबैद ने दमिश्क़ जा कर एक तरफ यज़ीद को इस्लाह का मशवरा दिया और दूसरी तरफ हज़रत माविया से कहा के आप इस मामले में जल्दी न करें.खैर आखिरकार यज़ीद बादशाह बन गया और इस तरह से इस्लाम में खिलाफत का खत्म होगया!

पहला वाकया हज़रत हुसैन की शहादत का है

इसमें कोई शक नहीं कि इराक वालों की दावत पे वो यज़ीद की हुकूमत का तख्ता उलटने के लिए तशरीफ़ ले जा रहे थे,और यज़ीद की हुकूमत उन्हें बागी समझ रही थी,ये समझती थी कि हम से बगावत कर के जंग करना चाहते हैं,ये बात किसी भी सूरत में कबूल करना सही नहीं होगा के वह जंग करने जा रहे थे क्यों के वह कोई फौज ले कर नहीं जा रहे थे, 

उन के साथ उन के बाल बच्चे थे और सिर्फ 32 सवार और 40 पयादे थे,इससे कोई भी ये नहीं कह सकता कि ये कोई फौजी चढ़ाई थी और जंग का मक़सद था,उन के मुक़ाबले में उमर बिन साद बिन आबि वकास के तहत जो फ़ौज़ कूफ़ा से भेजी गयी थी उन की तादाद 4 हज़ार थी, कोई जरुरत नहीं थी कि इतनी बड़ी फौज इस छोटी सी जमात से जंग ही करती और उससे क़तल कर डालती !यह छोटी सी जमात जो हज़रात हुसैन की थी उससे आसानी के साथ ग्रिफ्तार कर सकती थी !

हज़रत हुसैन ने आख़री वक़्त में क्या कहा

हज़रत हुसैन ने आख़री वक़्त में जो कहा था वह ये था कि या तो मुझे वापस जाने दो या किसी सरहद की तरफ निकल जाने दो या मुझ को यज़ीद के पास ले चलो...लेकिन उनमें से कोई भी बात नहीं मानी गयी, और ये कहा गया कि आप को ओबैदुल्लाह बिन ज्याद (कूफ़ा के गवर्नर) के पास चलना होगा,हज़रत हुसैन अपने आप को इब्न ज्याद के हवाले करने के लिए त्यार नहीं थे,क्यों के मुस्लिम बिन अक़ील के साथ वह जो कुछ कर चूका था उन्हें मालूम था!

आखिर कार उन से जंग की गयी,जब उन के सारे साथी शहीद हो चुके थे और वह मैदान जंग में अकेले रह गए थे उस वक़्त भी उन पे हमला करना ही जरुरी समझा गया, और जब वह जख्मी हो कर गिर पड़े थे उस वक़्त उन को जबह किया गया फिर उन के जिस्म पर जो कुछ था वह लूटा गया यहाँ तक के उनके लाश पर से कपडे उतार लिए गए और उस पर घोड़े दौड़ा कर रौंदा गया,

फिर उनके रहने की जगह को लूटा गया जिस जगह जंग के वक़्त रहते थे और औरतों के जिस्म पर से चादरें तक उतार ली गयी,फिर सभी शहीद हुए शोहदों का सर काट कर कूफ़ा ले गए, इब्न ज्याद ने न सिर्फ उनकी नुमाइश की बलके मस्जिद के मिम्बर पे खड़े हो कर ये ऐलान किया,फिर ये सारे यज़ीद के पास दमिश्क़ भेजे गए !

मैदान जंग से ले कर कूफ़ा और दमिश्क़ के दरबारों में किया गया ये हर एक काम हराम और बहुत ही ज़ुल्म था,दमिश्क़ के दरबार में जो कुछ यज़ीद ने किया और कहा उस के मुतालिक रिवायत अलग अलग हैं,सब रिवायत को छोड़ कर हम यही मान लेते हैं के वह हज़रत हुसैन और उन के साथियों का सर देख उस के आँखों में आँसू आगये और उसने कहा के मैं हुसैन के क़त्ल के बगैर भी तुम लोगों की वफादारी से राज़ी था, अल्लाह की लानत हो इब्न ज्याद पर ख़ुदा की क़सम अगर मैं वहां होता तो हुसैन को माफ़ कर देता,और ख़ुदा की क़सम ए हुसैन मैं तुम्हारे मुक़ाबले में होता तो तुम्हे क़त्ल न करता!

फिर ये सवाल पैदा होता है के इतने बड़े ज़ुल्म के लिए उसने अपने सरफिरे गवर्नर का क्या किया?सजा दी या गवर्नर से बेदखल किया?हाफिज इब्न कसीर कहते हैं के न उसने कोई सजा दी और न ही गवर्नर से हटाया न उसे बुरा भला लिख के कोई खत भेजा,यज़ीद में अगर इंसानी शराफत की जरा सी भी कोई बात होती तो वह सोंचता के फ़तेह मक्का के बाद रसूल ने उस के पूरे खानदान पर क्या एहसान किया था, और उसकी हुकूमत ने उन के नवासे के साथ कैसा सलूक किया !

दूसरा सख्त अलम्नाक वाक़्या जंग हुर्राह
दूसरा सख्त अलम्नाक वाक़्या जंग हुर्राह का था जो 63 हिज़री के आखिर और खुद यज़ीद की ज़िन्दगी के आख़री वक़्त में पेश आया,उस की मुख़्तसर रूदाद ये है के मदीना के लोगों ने यज़ीद को फ़ासिक़ फाज़िर और ज़ालिम क़रार दे कर उस के खिलाफ बगावत कर दी!

उस के आमिल को शहर से निकाल दिया और अब्दुल्लाह बिन हनज़ला को अपना सरबराह बना लिया,जब ये खबर यज़ीद को मिली तो उसने मुस्लिम बिन उक़्बा को 12 हज़ार फ़ौज़ दे कर मदीना पे चढ़ाई के लिए भेज दिया,और हुक्म दिया के तीन दिन तक शहर वालों को बादशाही क़बूल करने की दावत देते रहना !

फिर अगर न माने तो उन से जंग करना, और जब जीत हासिल कर लो तो तीन दिन के लिए मदीने पे फ़ौज़ को जो दिल में आये वह सब करने की पूरी इजाज़त दे दो,इस हिदायत पे फ़ौज़ मदीना पहुंची और जंग हुयी और जीत हासिल हो गयी और उस के बाद यजीद के हुक्म के मुताबिक़ तीन दिन के लिए फौज को इजाज़त दे दी गयीं के शहर में जो कुछ चाहे करे,उस तीन दिन में शहर के अंदर हर तरफ लूट मार की गयी,शहर के लोगों का क़त्ल किया गया,

जिस में इमाम ज़ेहरि की रिवायत के मुताबिक़ 11 हज़ार के करीब लोग मारे गए,और गज़ब ये के वहशी फौज़िओं ने घर में घुस घुस के औरतों की इज़्ज़त लूटी,हाफिज इब्न कसीर कहते हैं के "कहा जाता है के उन दिनों में 1000 औरते बलात्कार से गर्भवती हुई थी.

तीसरा वाकया

मदीना से फारिग होने के बाद वही फ़ौज़ रसूलुल्लाह के हरम में ये शोर उद्यम मचाया था, हज़रत ज़ुबैर से लड़ने के लिए मक्का पे हमला किया और खाना काबा पे पत्थर बरसाये जिससे काबा की एक दीवार कमजोर और टूटी सी होगयी, रवायत ये भी है के उन लोगों ने काबा पे आग बरसायी थी लेकिन आग लगने के कुछ दूसरे वजेह भी ब्यान किये जाते हैं, लेकिन काबा पर पत्थर बरसाने का वाक़्या बिलकुल सही माना जाता है,ये सभी वाक़्यात से ये बात बिलकुल साफ़ हो जाती है के ऐसे हुकुमरान सिर्फ अपने बादशाहत के लिए और अपनी बादशाहत बनाए रखने के लिए बड़ी से बड़ी हुरमत को तोड़ डालने में जरा सा भी खौफ नही खाये....

सारांश
इस्लाम में चार खलीफा हुए हैं,अबू बक्र, उम्र,उस्मान और अली.पैगंबर मोहम्मद सल्ललाहो अलैहसल्लम की पेशनगोई थी कि इस्लाम में खलीफा का दौर सिर्फ 30 साल तक रहेगी,उस के बाद बादशाहत शुरू हो जाएगी और ऐसा ही हुआ,इस्लाम का पहला बादशाह हज़रत माविया और उनका बेटा यज़ीद हुये,जिन्होंने इस्लामिक क़ानून ताक पे रख के अपनी मर्ज़ी की बादशाहत की,यज़ीद के बादशाहत में मुसलमानों का कत्ल और मुस्लिम औरतों का बलात्कार भी हुआ.इस्लामिक इतिहास के मुताबिक़ ये इस्लाम का सब से बुरा दौर था !







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