आयशा की आत्महत्या के दोषी हैं उलेमा
आयशा की आत्महत्या के दोषी हैं उलेमा : जब से अहमदाबाद की एक 23 वर्षीय मुस्लिम महिला आयेशा की आत्महत्या का मामला सामने आया है भारत के सभी मौलाना लोगों की नींद खुल गयी है, ऐसा लगता है की आयशा की आत्महत्या उलेमाओं की नींद खराब कर दी है, सोशल मीडिया पर उलेमाओं की तकरीर और "दहेज हराम है" की बारिश हो रही है, क्या आयेशा की आत्महत्त्या से पहले दहेज हराम नहीं था? क्या यह मुस्लिम समाज में पहली बार हुआ है? न जाने कितनी आयशा हर दिन इस भारत में आत्महत्या कर रही हैं।
फ़रवरी का महीना शुरू होते ही जलसा का इज्तेमा का मौसम शुरू हो जाता है, कुछ घंटों के जलसे का इज्तेमा के लिए महीनों से वसूली शुरू हो जाती है, जलसे और इज्तेमा में लम्बी लम्बी तकरीरें की जाती है लेकिन मुस्लिम समाज में जरा भी सुधार नहीं होता है। आयेशा की आत्महत्त्या के बाद सभी मुस्लिम फ़िरक़े के उलमाओं ने यह आदेश जारी किया है कि जुमा के दिन मस्जिद के इमाम दहेज़ के खिलाफ ख़ुत्बा दें और मुस्लिम समाज को जागरूक करें।
मुस्लिम विवाह में उलमा का महत्व
मुस्लिम धर्म में विवाह सुन्नत है, मुस्लिम धर्म में विवाह केवल निकाह पर आधारित होता है, निकाह जो किसी मोलवी के द्वारा पढ़ाई जाती है या जो निकाह की दुआ पढ़ सकता है वो भी पढ़ा सकता है, लेकिन अक्सर उलेमा ही निकाह पढ़ाते हैं।
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निकाह पढ़ाने वाले मौलवी को सब पता होता है कि इस विवाह में कितना दहेज दिया या लिया गया है लेकिन फिर भी निकाह पढ़ाते है, मुस्लिम मालदार घरों की शादिओं में काफी मोटी दहेज़ वसूली जाती है, जिस में सबसे बड़े मौलाना निकाह पढ़ाने जाते हैं, बड़े मौलाना का मतलब जो इस्लाम को बहुत अच्छी तरह समझता है।
अक्सर मौलाना किसी मदरसे से जुड़े होते हैं, और आप सब जानते हैं कि मदरसा ज़कात और खैरात के माल से चलता है, अगर बड़े मौलाना मालदार मुस्लिम के विवाह में निकाह पढ़ाने नहीं जायेंगे तो उन्हें डर है की अब उस घर से जकात का माल नहीं मिलेगा। दहेज़ लिए या दिए गए विवाह में अगर कोई मौलवी निकाह नहीं पढ़ाएगा तो सुधार अपने आप ही शुरू हो जायेगा।
मुस्लिम समाज में सुधार के लिए उलेमा को यह भी करना चाहिए के जो दहेज़ ले लिया है उसके घर की मैयत को जनाज़े की नमाज़ भी नहीं पढ़ाएंगे, केवल तक़रीर करने से काम नहीं चलेगा,अमल भी करना पड़ेगा। यह भी होना चाहिए की जो उलेमा जकात का माल वसूल करते हैं और 40% अपना हिस्सा रख लेते हैं उनके साथ भी यही सलूक होना चाहिए।
आयेशा की आत्महत्त्या इस्लाम की रौशनी में
इस्लाम में आत्महत्त्या हराम है आयेशा ने जो क़दम उठाये वह भी गलत है, किसी भी हाल में इस्लाम आत्महत्त्या की इजाज़त नहीं देता है, आयेशा एक मुस्लिम महिला थी फिर उसने आत्महत्त्या जैसे हराम मौत को कैसे पसंद कर लिया? कायरता और मूर्खता के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है, आयेशा एक मुस्लिम महिला थी लेकिन उसको इस्लाम की कोई जानकारी नहीं रही होगी।
आयेशा की आत्महत्त्या देश को सदमे में डाल दिया है, पुरे देश के नागरिकों को सदमा है लेकिन आयेशा ने आत्महत्त्या कर के यह साबित कर दिया है कि वह एक कमजोर महिला थी। इस्लाम में अपने पति से अलग होने की प्रकिर्या है, वह अपने पति से अलग हो सकती थी लेकिन आत्महत्त्या किसी परेशानी का हल नहीं होता है।
आयशा की आत्महत्या पर उलेमा के बयान
मुस्लिम समाज में जो मर्द दहेज लेता है वह नामर्द है!! अरे मौलाना साहेब तुम ही एक नामर्द की निकाह पढ़ाते हो, क्या इस्लाम कहता है की जो दहेज लेता है वह नामर्द है?? तुम मौलवी लोग बार बार गलत दिशा में क्यों चले जाते हो??
तुम यह क्यों नहीं कहते कि दहेज लेना और देना दोनों हराम है, यह सुन्नत नहीं है और जो सुन्नत के खिलाफ निकाह करेगा उसकी निकाह नहीं होगी, अगर किसी ने निकाह पढ़ा भी दी तो वह निकाह जायज़ नहीं और तुमसे पैदा होने वाले बच्चे हरामि होंगे। नामर्दी की सर्टिफिकेट तुम क्यों दे रहे हो??
इस्लाम में बीवी के साथ हुस्ने सलूक के बारे में बताओ!! पति बीवी की एक दो जरुर्यात क्या पूरी कर देता है तुम सब उसको बीवी का गुलाम कहते हो और समझते हो। तुम यह क्यों नहीं बताते कि इस्लाम में एक औरत का क्या मक़ाम है? तुम तो केवल नमाज़ पढ़ने और चिल्ला लगाने को ही इस्लाम समझते हो। तुम खुद हराम हलाल की तमीज नहीं रखते हो फिर तुम्हारी तक़रीरों में कैसे असर पैदा होगी??
अल्लामा इक़बाल कुछ इस तरह लिखते हैं-
प्रिये मित्रों शायद मेरी बात कुछ बुरी लगी होगी लेकिन हमारे आसपास ना जाने कितनी आयेशा मर चुकी है और मरने के लिए तैयार हैं, किसी के दिए हुए दहेज़ से आज तक कोई भी मालदार नहीं हुआ है और ना कभी हो सकता है, आप के घर भी कोई आयेशा होगी जरा सोचो अगर उसके साथ भी ऐसा हुआ तो तुम्हें कैसा लगेगा?? ऐसी लालच से बचो और सच्चे मुसलमान बनो!! अगर बात अच्छी लगे तो दूसरों तक पहुंचा दो।
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