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कैसी सुन्नत, कैसा इस्लाम?

कैसी सुन्नत, कैसा इस्लाम : निकाह इस्लाम में सख्त जरुरी अमल है क्योंकी यह नज़र को नीची रखने वाला और शर्मगाह को महफूज़ रखने वाला अम्ल है, इस लेख में इसी विषय पर चर्चा की जाएगी कि मुसलमान सुन्नत और इस्लाम को कैसे ताक पर रख कर निकाह करते हैं, किस तरह सुन्नत और इस्लाम का मज़ाक उडाते हैं, आखिर यह मुसलमान किस प्रकार की सुन्नत और इस्लाम पर अमल करते हैं?

हज़रत मोहम्मद स.व.स. ने फ़रमाया : नौजवानो की जमात ! तुम में जिससे भी निकाह करने के लिए माली ताक़त हो उससे निकाह कर लेना चाहिए क्यूंकि यह नज़र को नीची रखने वाला और शर्मगाह की हिफाज़त करने वाला अम्ल है और जो कोई निकाह की बावजेह ग़ुरबत ताक़त न रखता हो उससे चाहिए के रोज़ा रखे क्यूँकि रोज़ा उसकी खवाहिशेनफ्सानी को तोड़ देगा. इतना अहम अमल को किस तरह तार तार किया जाता है हर मुसलमान बहुत अच्छी तरह समझता है।

Islam me shadi sunnat ke khilaf
कैसी सुन्नत, कैसा इस्लाम?

एक आदमी के लिए पत्नी का महत्व

तिर्मिज़ी की हदीस का मफ़हूम है की जब तुम में से कोई शख्स किसी औरत को देख ले और उस के हुस्न से मुतासिर हो तो अपनी बीवी के पास चला जाए क्यूँ के उस के पास भी वही है जो उस के पास है।

बुखारी शरीफ में इरशाद है की- औरत अपने शौहर के घर की हुकुमरान है और वही अपनी हुकूमत के सीमा में अपने अमल के लिए जवाबदेह है।

अल्लाह के हुक्म को कैसे ताक पर रखा जाता है, सुन्नत और इस्लाम का मज़ाक बनाया जाता है और औरत घर की हुकुमरान नहीं केवल एक नौकरानी ही शुमार किया जाता है क्यों की यह बात शादी से ही शुरू होती है

सुन्नत और इस्लाम के खिलाफ निकाह

मुसलमानो में आज कल निकाह नहीं होता है, जानवरों की तरह बेटा बेचा जाता है, या यह कह सकते हैं की लड़की वाले लड़का खरीदते हैं, जिस क़ाबलियत का लड़का होगा वैसा ही दाम मिलेगा, लड़का होना मतलब कोहिनूर हीरा हाथ लग जाना। फिर ये कैसी सुन्नत, कैसा इस्लाम?

निकाह के नाम पर शादी तुम करो और दो तीन सौ बरातियों के खाने का ख़र्चा लडकी के माँ-बाप उठाए यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ?

शादी के वक़्त यह बताते हो कि मेरा बेटा डॉक्टर है इंजीनियर है,इतना कमाता है, उससे इतना बीघा ज़मीन है और मेहर देने के नाम पर गरीब हो जाते हो, मेहर तुम देते नहीं, उधार रखकर माफ़ करवा कर हक़ मारना यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है?

शुरुआती दो साल तक बीवी से पूरे खानदान की नौकरी करवा कर उसे खिदमत का नाम देकर जब डिलिवरी का वक़्त करीब आया तो उसे फिर "मायके" छोड़ आना कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है?

ज़्यादातर डिलिवरी सिजेरियन अपरेशन से हो रही हैं, पैदा होने वाला बच्चा तुम्हारा, और उसका ख़र्चा लड़की के माँ-बाप उठाए यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है?

अरे लोगों यह डाकुओं और लुटेरों वाली आदतें अपने आप में से निकालो और सुधर जाओ, और क़ौम के हर तबक़े और हर मां बाप को चाहिए कि वह बारातियों को खाना खिलाने का रिवाज बंद करें और लड़के वालों को भी चाहिए कि वो लड़की के वालिदैन से बकवास फ़रमाइशें बंद करें!

बरात में जाना वाला कुत्ता कभी खाने की तारीफ नहीं करता है,हमेशा कुछ ना कुछ कमी निकाल ही देता है, तमाम बाराती कुत्तों से कहना चाहता हूँ की यह कुत्तापन छोड़ दें और बरात ना जाएँ।

अपनी बीविओं के गरीब शौहर अगर मर्द की औलाद हो और तुम्हारे बाप भी एक मर्द है तो ये जान लो की मेहर लड़की का हक़ है जिसे लड़की खुद तय करे या फिर वो बाप भाई में से जिसे जिम्मेदारी दे वो तय करे, जहां तक हो सके मेहर को गोल्ड सोने पर तय करो और उससे फ़र्ज़ समझ कर अदा करो,भिखारी की तरफ माफ़ करवाने के चक्कर में ना रहो। माफ़ी नहीं तुम्हे चाहिए कि मेहर हाथों हाथ लड़की को दे दें। मेहर पर सिर्फ ओर सिर्फ लड़की का हक़ होता है वो जो चाहे वो करे जिसे चाहे उसे दे। मेहर अदा करने के बाद मेहर की रकम पर लड़के का या लड़के के घर वालों का कोई हक नहीं !!

आइये हम अहद करें कि हम अपने बेगैरती के लिबास पर ग़ैरत की चादर डाल कर शादियों के नाम पर होने वाले तमाम फ़ुज़ूल के कामों को रोक कर निकाह को आसान और ज़िंदगी को ख़ुशगवार बनाएंगे और यह भी तय करें कि हमारी वजह से कोई लड़की किसी बाप पर बोझ न बने!!

अगर बात पसंद आई हो तो इसे दूसरों तक पहुंचा दें!!

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