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कितना बदल गया मुसलमान

कितना बदल गया मुसलमान: पूरी तरह इस्लाम के मानने वालों को मुसलमान कहते हैं, इस्लाम का मतलब होता है आज्ञाकारिता और फरमाबरदारी,अल्लाह ईश्वर की आज्ञाकारिता और फरमाबरदारी करने वालों को मुसलमान कहते हैं! बहुत आश्चर्य की बात है की आज कल किसी मुसलमान में ना ही आज्ञाकारिता है और ना ही फरमाबरदारी फिर ऐसे लोग मुसलमान कैसे हो गए?क्या आज कल के मुसलमान केवल नाम के ही रह गए हैं केवल मुसलमान नाम रख लेने से कोई मुसलमान हो जाता है?आखिर मुसलमान इतना क्यों बदल गया है?

मुझे ऐसा लगता है की विश्वास,आज्ञाकारिता और फरमाबरदारी अब केवल इस्लाम के धार्मिक किताबों में पढ़ने के लिए ही रह गया है, विश्वासऔरआज्ञाकारिता समझने के लिए ज्ञान चाहिए ,अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए ज्ञान और यक़ीं की जरुरत होती है जो आज कल के मुसलमान के पास नहीं है,धार्मिक किताबों के अनुसार आज कल के मुसलमान में इस्लाम का कोई भी गुण देखने को नहीं होता है,क्यों इतना बदल गया मुसलमान?क्या मुसलमान अपने धर्म और कर्म से काफी दूर होते जा रहे हैं?
Badalte huye Musalmaan kaise hote ja rahe hain
badalte huye Musalmaan
विश्वास,ज्ञान औरआज्ञाकारिता को ही ईमान कहते हैं,ईमान के बिना कोई भी इंसान मुसलमान नहीं हो सकता है,इस्लाम और ईमान का रिश्ता ठीक उसी तरह है जैसे किसी पेड़ का रिश्ता बीज से होता है,बीज के बिना किसी भी पौधे या पेड़ का उगना संभव नहीं है,लेकिन आज कल के मुसलमान ईश्वर पर कम और खुद पे या किसी दुसरे पे ज्यादा यकीन रखते हैं,एक प्याली चाय पे दिन भर झूठ बोल सकते हैं,थोड़ी सी लालच के लिए सुबह से शाम तक किसी की तारीफ करते नहीं थकते चाहे उस इंसान में वह ख़ूबी हो या नहीं हो!

आज कल के मुसलमान को यह भी पता नहीं है की किस पे यक़ीन करना चाहिए,कुछ मुसलमान अल्लाह पे यक़ीन करते हैं, कुछ नबी पे करते हैं,कुछ मजार वाले बाबा पर करते हैं,कोई वली पे तो कोई किसी पे,अगर ईमान है और ईश्वर अल्लाह पर भरोसा है तो फिर अल्लाह के बनाये हुए कानून का पालन क्यों नहीं करते?

अक्सर मुसलमान कहते हैं की उस ब्यक्ति के कारण मेरा काम ख़राब हो गया,उस ब्यक्ति के कारण मेरा काम नहीं हुआ,जब के ईश्वर कहता है की अगर मैं कोई चीज़ देना चाहूँ तो पूरी दुनिया मिल के भी वह चीज़ तुम से नहीं छीन सकती है,अगर कोई चीज़ तुम से छीन लेना चाहूं तो पूरा संसार मिल के भी वह चीज़ तुम को नहीं दे सकती,अगर तुम अपनी नाकामी या नुक़सान किसी दूसरे के जिम्मे कर दिए तो फिर तुम ईमान वाले कैसे हो?हकीकत यह है के आज कल के मुसलमान केवल दूसरे पे ही यक़ीन और भरोसा करते हैं हाँ कहते जरूर हैं कि मुझे तो केवल अल्लाह पर ही भरोसा है!

ईमान और सच्चे मुसलमान की पहचान

जो इंसान ईश्वर पर भरोसा करता है और ईश्वर पर यकीन रखता है तो ईश्वर जिस काम को पसंद नहीं करता उस काम से वह इंसान ऐसे बचता है जैसे कोई इंसान आग में हाथ लगाने से बचता है,उस इंसान के दिल में आता है की नहीं ये काम मैं नहीं करूँगा क्यूंकि ये काम मेरे ईश्वर को पसन्द नहीं है!वह ईश्वर के बताए हुए रास्ते पर ऐसे चलता है जैसे कोई दौलत कमाने के लिए परिश्रम करता है!यह लोग असली मुसलमान होते हैं!

कुछ लोग ईमान तो रखते हैं लेकिन पूरी तरह ईश्वर पर यकीन और विश्वाश नहीं करते,ईश्वर की बात नहीं मानते फिर भी ऐसे लोग मुसलमान ही होते हैं, लेकिन ऐसे लोग ईश्वर का आपराधिक हैं मगर विद्रोही नहीं हैं!

जो ईमान नहीं रखते मगर ऐसे काम करते हैं जो ईश्वर के क़ानून के मुताबिक़ हो,देखने में अच्छा काम लगे और ईश्वर के क़ानून जैसा हो मगर ईश्वर पर यक़ीन और भरोसा नहीं हो ऐसे लोग विद्रोही हैं!

जो ईमान भी नहीं रखते और ईश्वर के क़ानून को किसी तरह नहीं मानते और हमेशा बुरे काम करते है ऐसे लोग भी ईश्वर का विद्रोही हैं!

इस्लाम के पांच खंभे-जिस के बिना इस्लाम या मुसलमान नहीं

इस्लाम में पांच अक़ीदह या विश्वास हैं जिस के बिना इस्लाम भी नहीं और मुसलमान भी नहीं,अब हम आपको बताते चलें कि आज कल के मुसलमान को कितना अक़ीदह या विश्वास है-
1. एकेश्वरवाद (तौहीद)- ईश्वर पर विश्वास,ईश्वर के देवदूत पर विश्वास,ईश्वर की किताबों पे विश्वास,ईश्वर के मैसेंजर पर विश्वास,मौत के बाद के जीवन पर विश्वास,इन सब बातों पे यकीन और भरोसा करना अनिवार्य है!

वैसे कहने को आज कल के मुसलमान इन सभी बातों पे यक़ीन रखते है मगर हकीकत में देखा जाये तो ऐसा कुछ भी नहीं है,हम आप को पहले ही बता चुके हैं की आज कल के मुसलमान ईश्वर पे कितना भरोसा करता है,गुरुर और घमंड में चूर मुसलमान धोखा गद्दारी और मक्कारी में सब से आगे है,दान पुण्य किया हुआ माल लूट के खाना और ईश्वर का हुक्म जानबूझ के ताक पर रख देना आज कल के मुसलमान का फ़ितरत और आदत है," हम पर भरोसा करना जरा संभल के,जो भी मिला हम से गया हाथ मल के,आदत है धोखा गद्दारी है फितरत, ईमान है क़ामिल बनते हैं साफ़ दिल के"!

2.नमाज़ (प्रार्थना)- नमाज़ इबादत का एक जुज़ (घटक) है, इस्लाम का या मुसलमान का पहला कर्तव्य है,हर रोज़ दिन में पांच बार नमाज पढ़ना फर्ज है,मैं आप से पूछता हूँ आज कल कितने प्रतिशत मुसलमान नमाज पढ़ते हैं?शायद 5 या 10 प्रतिशत मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं,फिर बाक़ी यह कौन लोग हैं जो नमाज़ नहीं पढ़ते हैं,फिर ये ईश्वर के मानने वाले और मुसलमान कैसे हो गए?

जब अज़ान होती है तो उसमे ईश्वर का प्रचार होता है,ईश्वर के तरफ बुलावा होता है,उसमे ईश्वर का प्रचारक कहता है حی الصلاۃ حی الفلاح आओ नमाज़ की तरफ आओ कामयाबी की तरफ फिर कितने मुसलमान जाते हैं?सुन के मुँह फेर के अपने काम में लगे रहते हैं जैसे कुछ सुना ही नहीं,आप ही बताओ अगर आप का कोई मालिक हो और वह अपने पास बुलाए और आप उसकी बात सुन के न जाओ और अपनी मर्ज़ी की करते रहो तो वह मालिक आप को क्या समझेगा?आप अपने मालिक की नज़र में कैसा रहोगे?ये फैसला मैं आप के ऊपर छोड़ता हूँ...

हाँ जुमा के दिन जरूर इन लोगों की मुसलमानियत जाग जाती है,केवल जुमा के जुमा और ईद बकराईद की नमाज़ पढ़ते हैं,आज कल के मुसलमान इबादत का पहला जुज़ (घटक) ही पूरा नहीं करता है फिर यह किस तरह के मुस्लमान हैं?

ऐसे मुसलमान के यहाँ अगर कोई मर जाये और उसका कोई रिश्तेदार (बेटा,भाई,बाप) किसी बाहर के देश रहता है तो मृतक के शरीर को तीन दिन तक रखा जाता है,बाप,बेटा,भाई,पोता जो भी है वह बाहर देश से आ रहा है,अब इस एअरपोर्ट पे आ गया है,अब यहाँ पहुंच गया है, आखिरकार वह रिश्तेदारघर पहुँचता है और मृतक के शरीर को दफ़न करने और नमाज़ जनाज़े के लिए ले जाया जाता है, जिसके लिए मृतक के शरीर को तीन दिन तक रखा जाता है उस को ये भी पता नहीं है की जनाज़े की नमाज़ कैसे पढ़ी जाती है,क्या पढ़ी जाती है.दफ़न करते वक़्त क्या दुआ पढ़ी जाती है,महीनो तक उस रिश्तेदार की तारीफ होती है कि इतनी दूर से अपना काम छोड़ के आगया है लेकिन उसके कारण मृतक के शरीर को कितनी तकलीफ पहुंची ये कोई नहीं सोचता है!

एक और बहुत अच्छा तमाशा होता है मृतक के घर वाले 5-10 दिन बहुत पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं,10 दिन के बाद कौन नमाज़ कैसी नमाज़,फिर जीवन जैसा था वैसा ही चलने लगता है,एक बात और बताने को दिल कर रहा है, मृतक के आस पास के रिश्तेदार चार पांच दिन खाना भेजते हैं आज कल ये भी फैशन चला है कि सादा खाना नहीं भेजा जाता है,गोश्त पुलाओ,बिरयानी,अंडा जरुर होना चाहिए,और मृतक के घर वाले जम के तोड़ाई करते हैं,पता नहीं उन के हलक में वह खाना कैसे उतरता है और भेजने वाले क्या सोच के भेजते हैं!ऐसे हो गए हैं आज कल के मुसलमान!

3. रोज़ा रखना (उपवास): रोज़ा इबादत का दूसरा जुज़ है मतलब ये दूसरा फ़र्ज़ है,रमज़ान के महीने में हर मुसलमान को रोज़ा रखना फ़र्ज़ होता है,रमज़ान एक साल में एक महीने का होता है जिसमें मुसलमान पूरे एक महीने उपवास करते हैं,मुसलमान को भूखा रहने से अल्लाह को कोई फायदा नहीं पहुँचता है,उसमे खुद इंसान के बहुत सारे फायदे हैं, रमजान में ईश्वर के लिए आज्ञाकारिता,पवित्रता,संहिता,हर तरफ ईश्वर का खौफ और नेकी करने का जज्बा होता है,लेकिन बहुत सारे मुसलमान रोज़ा नहीं रखते और कहते हैं कि मुझ से भूख बर्दाश्त नहीं होता है और खुल्लम खुल्ला खाते पीते हैं! ऐसे मुसलमानअधिसूचना ईश्वर को मानने से इनकार करते हैं!ऐसे बदलते मुसलमान भला अपने ईश्वर से किस बात की उम्मीद रखते हैं?

एक सर्वेक्षण से पता चला है की 60 प्रतिशत मुसलमान आज कल रोज़ा नहीं रखते हैं,बहुत सारे मुसलमान बिना किसी वजह के ही रोज़ा नहीं रखते हैं और इसमें भी बचने के बहुत सारे रास्ते निकाल लेते हैं,ऐसे बदलते हुए मुसलमान पे भरोसा करना कुछ ठीक नहीं है,जो अपने ईश्वर का नहीं हो सकता वह किसी और का क्या होगा?


4.ज़कात;अल्लाह ने हर मालदार मुसलमान पर ज़कात देना फर्ज़ किया है,ज़कात किसी गरीब रिश्तेदार,किसी मुहताज़,किसी दरिद्र ,किसी नए मुसलमान,किसी मुसाफिर को देने का आदेश दिया है, वैसे बहुत कम मुसलमान आज कल ज़कात देते हैं और जो जकात देते हैं वह अक्सर मदरसा में ही देते हैं,मदरसा में ज़कात तो दे देते हैं लेकिन ज़कात के माल का 33% तहसीलदार उड़ा देता है जो किसी भी सूरत जायज नहीं है,बाक़ी जो माल बचता है उसमे मदरसे का शिक्षकों का वेतन और मदरसे की इमारत बनाने में खर्च होता है जब के ज़कात के माल से शिक्षकों का वेतन और मदरसे की इमारत बनाना किसी भी सूरत जायज नहीं है,ज़कात के माल का खुल्लम खुल्ला बन्दरबांट चलता है!

ज़कात के माल के साथ ऐसे खेलना कोई गुनाह नहीं समझा जाता है,जो लोग इस्लाम का ज्ञान देते हैं वही लोग ऐसा करते हैं फिर ऐसे मुसलमान क्यों कर ईश्वर से डरने लगे,ईश्वर का कोई डर नहीं है,आज कल के मुसलमान को किसी तरह भी केवल माल चाहिए चाहे वह जाएज़ हो या नाजायज़!


पूरी जानकारी के लिए पढ़ें "क्या ज़कात का मुल्लाओं की जागीर है"

5.हज: यह ऐसा फ़र्ज़ है जिसको मुसलमान अपनी पूरी उम्र में केवल एक बार करे,यह केवल उन के लिए है जो मक्का और मदीना तक जाने का खर्च बर्दाश्त कर सके,ईश्वर ने हुक्म दिया है के जब हमारे घर की तरफ़ आओ तो अपने दिलों को पाक करो,मनोवैज्ञानिक इच्छाएं को त्याग करो,रक्तरंजितता और शरारत त्याग करो,बुरी क्रिया को त्याग करो,जब इस विनम्रता के साथ आओगे तो ईश्वर कहता है की हम अपनी नवाज़शों से तुम्हें मालामाल कर देंगे!

मगर बहुत खेद के साथ लिखना पड़ रहा है की आज कल के मुसलमान ना ही पाक साफ हो के जाते हैं और ना ही पाक साफ़ हो के आते हैं,अक्सर मुसलमान हज करने के बाद और ज्यादा बिगड़ जा रहे हैं,झूठ,फरेब मक्कारी बढ़ती ही चली जाती है,दुनिया की दौलत कमाने में ऐसे ऐसे काम करने लगते हैं कि मुझे उसकी ब्याख्या करना ठीक नहीं लग रहा है,ना जाने आज कल के मुसलमान को क्या हो गया है?आखिर ऐसे क्यों बदल रहे हैं मुसलमान?

6.इस्लाम का समर्थन (जिसको जिहाद भी कहा जाता है) यह भी इस्लामिक फ़र्ज़ में से एक फ़र्ज़ है,लेकिन बहुत सारे मुसलमान इसका गलत मतलब निकाल लेते हैं,जिहाद का ये मतलब बिलकुल नहीं है की किसी बेगुनाह को कतल करो,मारो और तकलीफ पहुचाओ,आज कल जिहाद के नाम पे आतंकवाद किया जाता है,याद रखें एक आतंकवादी कभी मुसलमान नहीं हो सकता है और एक मुसलमान कभी आतंकवादी नहीं हो सकता है!

पूरी दुनिया में आज मुसलमान को आतंकवादी के नाम से जाना जाता है आखिर क्यों?जिहाद का मतलब होता है किसी काम में अपनी पूरी ताकत लगा देना,लेकिन खासतौर से जिहाद का मतलब जंग से लिया गया है,ऐसा जंग जो किसी जाती फायदे के लिए न हो केवल ईश्वर के लिए इस्लाम के दुश्मन से की जाये और भी इसके बहुत सारे शर्त है,छुप के किसी बेगुनाह इंसान को मारना जिहाद तो नहीं कहते हैं,ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही हो सकते हैं,बहुत सारे मुसलमान ऐसे है जो कभी नमाज़ नहीं पढ़ते,रोज़ा नहीं रखते,ज़कात नहीं देते लेकिन जिहादी जरूर है याद रखें ऐसे लोग जिहादी नहीं केवल आतंकवादी हैं!!!!!

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